धर्म में आस्था रखने वाले अधिकांश लोग मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा-चर्च जाकर अथवा घर पर ही पूजा-पाठ जरूर करते हैं। लोग जब पूजा-पाठ करते हैं तो वे अपने ईष्ट से सांसारिक मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। बहुत लोग अपने ईष्टदेव से इन आवश्यकताओं के लिए अनुबंध भी करते हैं कि उनकी कामनाएं जैसे ही पूरी होंगी तो वे कुछ भेंट चढ़ाएंगे या दान करेंगे। संयोगवश कार्य पूर्ण होने पर विशेष धार्मिक अनुष्ठान आदि करते दिखाई भी पड़ते हैं। तमाम धर्मगुरु इस तरह का आश्वासन भी देते हैं कि जप-तप से उनकी मनोकामनाएं त्वरित गति से पूरी हो जाएंगी।
सवाल है कि क्या ऐसा होना संभव है?
क्या पूजा-पाठ, भेंट, अनुष्ठान आदि से ऐसा होने, अपनी मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास करना चाहिए? हमारे धर्मशास्त्रियों, विद्वानों, आचार्यों, गुरुओं, ज्योतिष के विद्वानों आदि द्वारा दावा किया गया है कि हमारे वैदिक और आध्यात्मिक मंत्रों में अद्भुत, दिव्य, चमत्कारिक ऊर्जा है, शक्तियां हैं। पूछा जाता है, प्रश्न किया जाता है कि क्या सचमुच में ऐसा है? क्या ऐसा चमत्कार हो सकता है? क्या मंत्रों में परमाणुविक भौतिक विज्ञान से उपलब्ध संचार तथा संहारिक, जैविक क्षमता है? यानि आज भी मंत्रों का सार्थक उपयोग है? जिन देवी-देवताओं से संबंधित यंत्रों की पूजा-अर्चना आदि से कामनापूर्ति, दरिद्रता से सम्पन्नता, बाधाओं से मुक्ति के प्रति आश्वस्त-विश्वस्त किया जाता है, प्रश्न है- क्या ये यंत्र अभिमंत्रित, प्राणप्रतिष्ठित, चैतन्य युक्त किये जा सकते हैं? स्वर्ण, चांदी, पीतल, ताम्रपत्र, भोजपत्र अथवा अन्य धातु पर अंकित ये यंत्र वाकई में चमत्कार दिखा सकते हैं?