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गजानन श्रीगणेश एकदन्त क्यों ?

गणेश जी एकदन्त कहलाते हैं, यह हम सभी जानते हैं परन्तु क्या आप सब यह जानते हैं कि वह एकदन्त कैसे कहलाए ? आज मैं आपको इनके पीछे जो रहस्य है वह बताता हूं। एक बार महर्षि पाराशर के पुत्र महर्षि वेदव्यास के ह्नदय में एक महाकाव्य की रचना करने की इच्छा हुई परंतु धर्म-कर्म के नियम से बंधे व्यासजी के लिए यह ग्रंथ स्वयं लिखना अत्यंत कठिन था, क्योंकि जितनी तीव्रता से उनके ह्नदय में भाव आते थे, उतनी तीव्रता से वह स्वयं नहीं लिख सकते थे। अतः वह ब्रह्ना के पास गए और उनसे बोले- ’’हे सृष्टा, सृष्टि का कोई भी प्राणी आपसे छिपा नहीं है। अतः मेरी एक समस्या का समाधान कीजिए।
मैं एक महान ग्रंथ की रचना कर रहा हूं, परन्तु उसे लिपिबद्ध करने का कार्य मैं स्वयं नहीं कर सकता। आप किसी योग्यतम लेखक के विषय में बताएं, जो मेरे द्वारा बोलते जाने पर रचना को शीघ्रतापूर्वक लिपिबद्ध कर सके। ’’ब्रह्ना बोले – ’वत्स, यह कार्य तो केवल गणेश ही कर सकते हैं। तुम उनसे अनुरोध करो। वही तीव्रता से लेखन कार्य करने में सक्षम है। ’’व्यासजी ने गणेश का उनसे अनुरोध करो। वही तीव्रता से लेखन कार्य करने में सक्षम है। ’’व्यासजी ने गणेश का ध्यान किया। अंततः गणेश प्रसन्न होकर, प्रकट हुए और बोले, ’’कहिए, महर्षि किसलिए मेरा स्मरण किया ? मुझसे क्या चाहते हैं आप ?’’ व्यासजी बोले- ’हे गणेश, मैंने एक महान ग्रंथ की कल्पना की है। मैं चाहता हूं कि मैं उसे बोलकर आपको सुनाऊं और आप उसे शीघ्रतापूर्वक लिपिबद्ध करें। ’’गणेश ने कहा -’’ठीक है, किंतु मेरी एक शर्त है कि मेरी कलम एक पल के लिए भी नहीं रूकेगी। ’’व्यासजी ने श्रीगणेश की शर्त मान ली। तब गणेश ने पूछा-’लेखन कार्य कब से आरंभ करना है?’’ ’’आज और अभी से।’’ व्यास ने कहा। ’’ठीक है।’’ श्रीगणेश बोले परन्तु उस समय उनके पास लेखन कार्य के लिए कोई कलम तो थी नहीं। अत उन्होंने अपना एक दांत तोड़कर उसी की कलम बनाई और ’महाभरत’ जैसे अद्भुत ग्रंथ का लेखन कार्य आरंभ किया और एकदंत कहलाए।

गणेश जी को मोदक प्रिय व एवं अग्रपूज्य की कथा का रहस्य

पाठकों, यह बात तो हम सभी जानते हैं कि गणेशजी को मोदक यानी लड्डू काफी प्रिय है और लड्डूओं के बिना गणेश जी की पूजा अधूरी ही मानी जाती है। उनकी मोदक प्रियता के संबंध में एक कथा मैं आपको बताता हूं- एक बार गजानन और कार्तिकेय के दर्शन करके देगगण अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने माता पार्वती को एक दिव्य लड्डू प्रदान किया। इस लड्डू को दोनों बालक आग्रह कर मांगने लगे। तब माता पार्वती ने लड्डू के गुण बताए कि इस मोदक की गंध से ही अमरत्व की प्राप्ति होती है। निःसंदेह इसे सूंघने या खाने वाला संपूर्ण शास्त्रों का मर्मज्ञ, सब तंत्रों में प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान, ज्ञान-विज्ञान विशारद और सर्वज्ञ हो जाएगा। फिर आगे कहा-तुम दोनों में से जो धर्माचरण के द्वारा अपनी श्रेष्ठता पहले सिद्ध करेगा, वही इस दिव्य मोदक को पाने का अधिकारी होगा। माता पार्वती की आज्ञा पाकर कार्तिकेय अपने तीव्रगामी वाहन मयूर पर आरूढ़ होकर त्रिलोक की तीर्थयात्रा पर चल पड़े और मुहूर्त भर में ही सभी तीर्थों के दर्शन, स्नान कर लिए। इधर गणेश जी ने अत्यन्त श्रद्धा-भवितपूर्वक माता-पिता की परिक्रमा की और हाथ जोड़कर उनके सम्मुख खड़े हो गए और कहा कि तीर्थ , देव स्थान के दर्शन, अनुष्ठान व सभी प्रकार व सभी प्रकार के व्रत करने से भी माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर पुण्य प्राप्त नहीं होता है। अतः मोदक प्राप्त करने का अधिकारी मैं हूं। गणेशजी का तर्कपूर्ण जवाब सुनकर माता पार्वती ने प्रसन्न होकर गणेशजी को मोदक प्रदान कर दिया और कहा कि माता-पिता की भक्ति के कारण गणेशजी यज्ञादि सभी शुभ कार्यों में सर्वत्र अग्रपूज्य होंगे। इसी कारण गणेश जी को सभी कार्यों में प्रथम पूजनीय माना।

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