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जान लीजिए: कहाँ से आते हैं पितृ

मनुष्य इस लोक से जाने के बाद अपने पारलौकिक जीवन को किस प्रकार सुखमय और शांतिमय बना सकता है ? उसकी मृत्यु के बाद उस प्राणी के उद्धार के लिए पुत्र-पौत्रादि के क्या कत्र्तव्य हैं? इसकी जानकारी सभी को होनी चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है पुत्रामनरकात् त्रायते इति पुत्रः यानी जो नर्क से रक्षा करे, वही पुत्र है। लेकिन अधिकांश लोगों को शंका होती है कि आखिर पितृ हैं भी या नहीं ? हैं तो कहां हैं, कहां रहते हैं, कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं? आज इन सभी शंकाओं का निराकरण कर, जान लीजिए कि उनका निवास कहां हैं और कैसे वे आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक हमारे द्वार पर खडे होकर प्रतीक्षा करते हैं। चन्द्रमा के उध्र्व भाग में यानी पिछले भाग में पितरों का लोक है और सारे पितर यहीं निवास करते हैं। ये आत्माएं यहां एक से लेकर एक हजार वर्ष तक रहती हैं। मृत्यु से लेकर उनका पुनर्जन्म होने तक इन आत्माओं का यही लोक होता है। कैसे आते हैं हमारे द्वार? सूर्य की सहस्त्र किरणों में से एक सबसे प्रमुख किरण का नाम है अमा। सूर्य हजारों किरणों से तीनों लोकों को प्रकाशमान करते हैं। सूर्य की इन्हीं हजारों किरणों में से अमा नाम की यह प्रधान किरण है। श्राद्ध का हिस्सा लेने चन्द्रमा से पृथ्वी पर ऐसे आते हैं पितृ तिथि विशेष को यही सूर्य किरण अमा चन्द्र का भ्रमण करती है तब उस अमा किरण के माध्यम से चन्द्रमा के उध्र्व यानी पिछले भाग से पितर धरती पर उतर आते आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक पितर अपने परिजनों के द्वार पर इस आशा और विश्वास के साथ खडे रहते हैं कि उनके पुत्र-पौत्रादि उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करेंगे। ये उनकी स्वाभाविक अपेक्षा है। श्राद्ध कर्म होने पर वे प्रसन्न होकर अपने परिजनों को सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद देकर पुनः अपने लोक को लोट जाते हैं। श्राद्ध समय का वैज्ञानिक आधार श्राद्घ के समय का धार्मिक, पौराणिक आधार है तो वैज्ञानिक आधार भी है, जैसे सूर्य, मेष से कन्या संक्रांति तक उत्तरायण व तुला से मीन राशि तक दक्षिणायण रहता है, इस दौरान शीत ऋतु का आगमन प्रारंभ हो जाता है। कन्या राशि शीतल राशि है। इस राशि की शीतलता के कारण चंद्रमा पर रहने वाले पितरों के लिए यह अनुकूल समय होता है। यह समय आश्विन मास होता है, पितर अपने लिए भोजन व शीतलता की खोज में पृथ्वी तक आ जाते हैं। वे चाहते हैं पृथ्वी पर उनके परिजन उन्हें तर्पण, पिण्डदान देकर संतुष्ट करें। इसके बाद शुभाशीष देकर मंगल कामना के साथ पुनः लौट जाते हैं।

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