हम सब जानते है कि धन की परिस्थिति सब की एक सी नहीं रहती। जिन व्यक्तियों को धन का अभाव रहता है उन्हें भी श्राद्ध कर्म करना अनिवार्य होता हैं, क्योंकि सभी पितृेश्वर इस समय की प्रतिक्षा करते है और यदि हम श्राद्ध कर्म आदि सम्पन्न नहीं करते है तो वह हम से नाराज होकर चले जाते है।
इस दृष्टि से शास्त्रों ने धन के अनुपात मंे कुछ व्यवस्थाएं की है। जैसे यदि अन्न-वस्त्र खरीदने में पैसे का अभाव हो तो उस परिस्थिति में शाक अर्थात् फल व सब्जियों द्वारा श्राद्ध कर देना चाहिए।
और यदि फल व सब्जियां खरीदने के लिए भी पैसे भी न हो तो त्रण काष्ठ अर्थात् लकड़ियां आदि को बेचकर पैसा इकट्ठा करें और उन पैसों से शाक खरीद कर श्राद्ध कर्म करें।
और यदि किसी भी तरह की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न हो तो ऐसी परिस्थिति में शास्त्रों में बताया है कि घास से श्राद्ध हो सकता है। अर्थात् घास काट कर गाय को खिला दें। तो भी श्राद्ध जैसा पुण्य फल प्राप्त होता है। इसलिए जरूरत है तो सिर्फ श्राद्ध व भावना की।
इस संबंध में मैं एक छोटी सी कथा ूं….एक व्यक्ति धन के अभाव से अत्यन्त ग्रसित था। उसके पास इतना पैसा भी नहीं था कि शाक खरीदा जा सके। इस तरह शाक आदि से भी श्राद्ध कर्म करने की परिस्थिति में नहीं था और श्राद्ध की तिथि आ गई थी। ऐसे में वह घबरा गया था और रो पड़ा, तब एक विद्धान ने उसे बताया कि शीघ्र ही घास काटकर पितरों के नाम पर गाय को खिला दो। यह सुनकर वह दौड़ा और घास काटकर गायों को खिला दी और इस श्रद्धा के स्वरूप मरणोपरान्त उसे देवलोक की प्राप्ति हुई।
धन अभाव में भी श्राद्ध की सम्पन्नता
08
Mar