ध्यान में मौन मंत्र, जाप, ईश्वरत्व को जाननें की साधनाएं, आत्मलीन होने की स्थिति विलक्षण है। ध्यान आपको अथाह गहराई में ले जाता है। ध्यान में नेत्र खुले भी रहते हैं तो बंद भी।
क्या है ध्यान-
ध्यान एक प्रयोग है, एक क्रिया है, साधना है। विचारों में शुद्धता , संयम, श्रद्धा, आत्मविश्वास, निष्ठा, निश्चय तथा समपर्ण, ये सात गुण स्थापित हो जाएं, अपने भीतर विकसित हों तो ध्यान में सफलता निश्चित है।
कैसे करें ध्यान –
चित्तवृत्ति को स्थिर कर बिना पलक गिराये जितना ही अधिक देर तक अभ्यास किया जा सके उतना ही अधिक लाभप्रद है। पहले प्रतिदिन दस-ही-पंद्रह मिनट अभ्यास करें, फिर धीरे-धीरे घंटे-सवा घटें तक बढ़ाते जाएं। जब आधे घंटे से अधिक चित्त को स्थिर रखकर बिना पलक गिराये एकाग्र दृष्टि से देखने का अभ्यास हो जाता है तब इष्ट देवता के दर्शन प्रारंभ होते हैं, उनसे सम्भाषण होता है। नेत्र खुले रखकर, किसी चित्र, किसी वस्तु पर दृष्टि केन्द्रित कर धीरे-धीरे पलके खुली रखने, पलकों को बंद नहीं होने देने की क्रिया इष्ट-दर्शन, सम्मोहन, आत्मचिंतक होना सर्वोपरि प्रयोग है। हालांकि ग्रन्थाकारों ने नेत्र खुले रखकर एकाग्रता से दृष्टि केन्द्रित रखने को भी आदर्श-ध्यान योग माना है।
बंद आखों के सामने आकाश का अनुभव-
ध्यान के इस संदर्भ में हम एक अन्य ध्यान-प्रयोग के बारे में जाने कि यह ध्यान करने के लिए सबसे पहले ढीले वस्त्र धारण करें। ध्यान प्रारम्भ करने से पूर्व यह सुनिश्चत कर लें कि कम से कम तीन घंटे पूर्व भोजन ग्रहण किया हुआ हो। गद्दी पर आराम से बैठे आसन लगा लें, उसके बाद बाहों को घुटनों तक फैला लें तथा ज्ञान मुद्रा में रखें। बहुत से लोगों का कहना है कि ध्यान के लिए कोई भी आसन या मुद्रा लाभदायी होगी लेकिन जब आप पद्मासन या सिद्धासन में होते हैं तो आपका शरीर बंधा रहता है जिससे शरीर स्थिर हो जाता है। आपका शरीर स्थिर रहने पर ही मन स्थिर हो सकता है। अतः ध्यान से पूर्व आसनों के अभ्यास पर विशेष बल दिया जाता है। अब आप आराम से बैठ जाएं तथा अपने शरीर को स्थिर रखंे, आंखें बंद कर लें। आपको कुछ भी नहीं करना है। अपने विचारों को भी नियंत्रित न करें। विचारों के आवागमन को जारी रहने दें, बस ध्यान दें कि विचार आ-जा रहे हैं। इसी बीच आप देखेंगे कि बंद आंखों के सामने आकाश का अनुभव हो रहा है। यह आकाश आप है। आप ज्ञाता है तथा आत्मा उस आकाश में रहती है। यही विचारों की उत्पत्ति का केन्द्र है। इसी अवस्था में आप स्थित हैं, विचारों को देख रहे हैं। ध्यान के दौरान आप मंत्र जप कर सकते हैं, लेकिन जागरूक, सतर्क रहने की आवश्यकता है। अब आप ध्यान की अवस्था में हैं। इस बात की कोई चिंता न करें कि आगे क्या करना है। ध्यान की प्रक्रिया को स्वयं ही सम्पन्न होने दो। कुछ देर बाद ध्यान से बाहर आ जाएं।