ऊँ
सृष्टि का सबसे प्राचीन मंत्र हैं। इसी ऊँ से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। यह सच है कि सृष्टि के आरंभ में एक ध्वनि गूंजी श्ऊँश् फिर इस ध्वनि की गूंज पूरे ब्रह्माण्ड में फैल गई। तभी सृष्टि की रचना हुईए इससे पहले केवल शून्य थाए सृष्टि नहीं। श्ऊँश् के बारे में जाने तो श्अ.उ.मश्ए यानी श्अश् उत्पन्न होनाए श्उश् यानी उठनाए श्मश् यानी मौन। इन वर्णों के उच्चारण से जीवन ही मंत्र बन जाता है। ऊँ का निरंतर जाप करने से जीवन में तनाव कम होते हैंए युवा स्फूर्ति का संचार होता हैए ब्रेन केमिकल्स पर नियंत्रण होता हैए हार्ट को चुस्त.दुरूस्त रखता है तो खून का प्रवाह सही ढंग से होकर बढिया पाचन शक्ति भी देता है। थकान और अनिद्रा से छुटकारा पाने में यह मंत्र रामबाण है। ओंमकार की ध्वनि को विश्व के सभी मंत्रों का सार कहा गया है। यह उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है। भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से ही ओंकार ध्वनि के महत्व से सभी परिचित हैं। शास्त्रों में ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्माण की अवस्था का प्रतीक है। कई बार मंत्रों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन उससे निकली ध्वनि शरीर पर अपना प्रभाव छोड़ती है। तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कंए खंए गंए घंए आदि। इसी तरह श्रींए क्लींए ह्रींए हूं फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभए होंठए तालए दांतए कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन्स स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथियों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है। रोग नाश के लिए बीज मंत्र का जाप शुभफल प्रदान करते हैं।