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पितृ नहीं देते दुराशीष, रह जाते हैं दोष

एक बड़ा डर और हव्वा खड़ा कर दिया गया है कि जो लोग श्राद्ध नहीं करते उन्हें पितृ दुराशीष देते हैं और उनकी सुख-शांति छिन जाती है। ऐसे परिवारों में हर समय संकट बना रहता है। यह बात गलत है। जिन माता-पिता या दादा-दादी और परिवार के अन्य बुजुर्गों ने जीते जी हमें सुख दिया, दीर्घायु होने का आशीष दिया, हमें हर सुविधा प्रदान की, हमसे लाड किया, हम पर प्यार लुटाया क्या वे मरने के बाद हमें दुराशीष देंगे? नहीं, वे मरणोपरान्त भी हमें आशीष ही देंगे और उनकी कामना यही होगी कि उनका परिवार फले-फूले और दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की करें। फिर पितृदोष और दुराशीष का हौव्वा क्यों? दुराशीष और दोष में अंतर है। हमारे पूर्वज जीते जी हमें सुख देते हैं तो मरने के बाद भी वे हमारी सुख की ही कामना करेंगे। आखिर हम उनका वंश है, उन्हीं के डीएनए हैं, उन्हीं के नाम से वंश को आगे ले जा रहे हैं। फिर क्यों वे हमें दुराशीष देंगे? नहीं, दुराशीष नहीं, हां दोष रह जाते हैं। जैसे किसी पुत्र को अपने पिता की मृत्यु के पश्चात मान लो तीस करोड की सम्पत्ति मिली, पिता की थी तो पुत्र को मिलनी ही थी। लेकिन पिता ने अपने जीते जी किसी की हत्या, किसी से धोखा, किसी की अमानत में ख्यानत कर दी हो तो? पितृ दोष बनता है हमारे पूर्वजों द्धारा किए गए ऐसे कर्मो से जो हमारे लिए श्राप बन जाते हैं। किसी पूर्वज की अकाल मृत्यु हो गई हो तो पितृ दोष बन जाता है। माता-पिता का अपमान हुआ हो तो पितृ दोष बन जाता है। मृत्यु के बाद विधि विधान से क्रिया-कर्म व श्राद्ध आदि न किए गए हों, गौ-हत्या हो गई हो या फिर भूणहत्या हो गई हो तो भी पितृ दोष बनता है। या पिता से उनके जीवनकाल में ऐसा अपराध हो गया हो, जिसका किसी को पता न हो तो उसका दोष तो आपको भोगना ही होगा ना? जब उनकी सम्पत्ति का भोग आप करते हैं तो जाने-अनजाने उनसे हुए अपराधों का भोग भी तो आपको करना होगा । पितृ दोष इन्हीं कारणों से बनता है ।

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